राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को परिभाषित करता एक उपन्यास ( ‘राष्ट्र समूह वाचक नहीं, बल्कि व्यक्ति वाचक’) राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को परिभाषित करता एक उपन्यास ( ‘राष्ट्र समूह वाचक नहीं, बल्कि व्यक्ति वाचक’)

Written by  परिकल्पना संपादकीय टीम   |  October 15, 2011  |   2 ‘बंद कमरा’ उपन्यास में राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को भी परिभाषित कि...

और जानिएं »
3:00 pm
 
Top