पुस्तकः हिंदी ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की नई क्रांति संपादकः अविनाश वाचस्पति और रवीन्द्र प्रभात प्रकाशकः हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर (उ.प्र) मूल्य- 495/(चार सौ पिचानवे ) रुपए प्रथम संस्करणः 2011.

पुस्तकः हिंदी ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की नई क्रांति/ संपादकः अविनाश वाचस्पति और रवीन्द्र प्रभात /प्रकाशकः हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर (उ.प्र)/ मूल्य- 495/(चार सौ पिचानवे ) रुपए /प्रथम संस्करणः 2011.

वर्तमान समय में मीडिया को पांच भागों में विभक्त किया जा सकता है। सर्वप्रथम प्रिंट, दूसरा रेडियो, तीसरा दूरदर्शन, आकाशवाणी और सरकारी पत्र-पत्रिकाएं चौथा इलेक्ट्रानिक यानि टीवी चौनल, और अब पांचवा सोशल मीडिया। मुख्य रूप से वेबसाइट, न्यूज पोर्टल, सिटीजन जर्नलिज्म आधारित वेबसाईट, ईमेल, सोशलनेटवर्किंग वेबसाइटस, फेसबुक, माइक्रो ब्लागिंग साइट टिवटर, ब्लागस, फॉरम, चैट सोशल मीडिया का हिस्सा है। यही मीडिया अभी ‘न्यू मीडिया’ की शक्ल में कई मठाधीशों की नींद चुरा ली है।कथित प्रगतिशील और पाषाणी सोच रखने वाले लेखक, रचनाकार भन्नाए-भन्नाए से दिख रहे हैं।उनकी आँखों की सूरमा में ‘न्यू मीडिया’ ने सेंध मार दिया है। वे इस नई पद्धति के खिलाफ खुल कर आग तो नहीं उगलते लेकिन आग वबूला अवश्य दिखते है। बहरहाल इस मीडिया की ताकत को वीकिलीक्स के रूप में अमरीका और अफ्रीका व मध्यपूर्व के देशों में ‘फेसबुकिया क्रांति’ के रूप में भी देखा जा सकता है। अभिव्यक्ति की आजादी का नया उद्धोष भी इसी नई मीडिया में देखी जा रही है। मात्र एक दशक में विश्व फलक पर नई सोच और जिम्मेवारी के साथ स्थापित हो रहे न्यू मीडिया पर केन्द्रित वृहत पुस्तक- ‘हिन्दी ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की नई क्रांति’ (पृष्ठ-376, मूल्य- 495/रू0 मात्र) हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर से आयी है।


न्यू मीडिया और विशेषकर ब्लॉगिंग जगत की तमाम अन्तर्वस्तुओं को स्पर्श करती इस पुस्तक में न्यू मीडिया और ब्लॉगिंग के शीर्षस्थ तकनीशियनों, लेखक व समीक्षकों के शोधात्मक आलेख हैं। संभवतः न्यू मीडिया और विशेषकर हिन्दी ब्लॉगिंग के इतिहास में यह इस तरह का अकेला ग्रंथ अथवा दस्तावेज है जो हिन्दी ब्लॉगिंग की दशा और दिशा को समग्रता के साथ प्रस्तुत करती है।


प्रस्तुत पुस्तक में – ब्लॉगिंग क्या है, ब्लॉगिंग का इतिहास, कैसे जुड़े ब्लॉगिंग से, मसहूर ब्लॉग, ब्लॉगिंग से कमाई आदि विषयों पर समग्रता से प्रकाश डाला गया है। इस पुस्तक के संपादक व लेखक- अविनाश वाचस्पति और रवीन्द्र प्रभात स्वंय भी चर्चित ब्लॉगर हैं। इनके अनेकाने पोस्ट एग्रीगेटरों पर प्रत्येक दिन दिखते हैं। ब्लॉग जगत के इन चर्चित खटरागियों ने हिन्दी ब्लॉगिंग को जन-जन तक पहूँचाने का मुहिम चलाया है। इसी कड़ी में यह पुस्तक ‘हिन्दी ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की नई क्रांति’ के माध्यम से सर्वप्रथम इन्होंने विश्व भर में फैले हिन्दी ब्लोगरों को एकजुट किया तथा शीर्षस्थ ब्लॉगरों यथा- रवि रतलामी, बालेंदु शर्मा दधीच, शैलेश भारतवासी, पूर्णिमा वर्मन, ज्ञानदत्त पाण्डेय, बी एस पावला, शास्त्री जे सी फिलीप, अनुप शुक्ल, रूपचंद्र शास्त्री, रणधीर सिंह ‘सुमन’, चंडीदत्त शुक्ल, प्रेम जनविजय, समीरलाल समीर आदि को इस पुस्तक में शामिल कर पुस्तक की सार्थकता को पुष्ट किया। पुस्तक को कई खंडों में विभक्त किया गया है। तकनीकी खंड में तेरह लेखक शामिल हैं। इसमें हिन्दी ब्लॉगिंग की तकनीकी पहलू मसलन् यूनिकोड टाइपिंग, वॉयस ब्लॉगिंग जैसे महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा है। शैलश भारतवासी हिन्दी ब्लॉगिंग के तकनीकी पहलू से अवगत कराते हुए लिखतें कि ‘इलेक्ट्रोनिक इंजीनियरिंग का यह अविष्कार मनुष्य का सबसे बढ़िया दोस्त बनकर आया है’। पुस्तक में ‘ब्लॉग प्रसंग’ के अन्तर्गत सिद्धेश्वर सिंह, सुरेश यादव, पवन चंदन और केवल राम के आलेख सम्मलित हैं। केवल राम ने अपने आलेख ‘हिन्दी ब्लॉगिंग रचनात्मक अभिव्यक्ति के विविध आयाम’ में लिखा हैं कि ‘हिन्दी ब्लॉगिंग आज व्यक्तिगत बातों के दौर से गुजरकर विमर्श के दौर में प्रवेश कर चुकी है। यहाँ पर रचनात्मक विविधता के इतने आयाम मिल जाते हैं जो साहित्य और रचनात्मकता के लिए सुखद है’। सुरेश यादव ब्लॉग और नेट पर उपलब्ध गंभीर साहित्यिक पन्नों की चर्चा करते हैं – अनुभूति, अभिव्यक्ति, कविता कोश, हिन्दी समय, हिन्द युग्म सहित काव्यम्, वाटिका, लघुकथा डॉट काम, भाषा-सेतु, जनशब्द, आखर कलश और अपनी माटी सदृश्य साहित्यिक हब हिन्दी ब्लॉगिंग में चार चांद लगाते हैं।


पुस्तक में संचार खंड में छः महत्वपूर्ण आलेख सम्मलित हैं । खुशदीप सहगल सक्रिय व चौकन्ने ब्लॉगरों में शामिल हैं उन्होंने ‘ब्लॉगिंग की ताकत’ को रेखांकित किया है, उनका कहना है- ब्लॉग के माध्यम से दुनिया में जहाँ कहीं भी भारतवंशी हैं, एक बडे़ परिवार की तरह जुड़ गए हैं।… वे न सिर्फ अपने शहर, अपने राज्य, अपने देश से हर वक्त संपर्क में रहते हैं, बल्कि हिन्दी का पूरी दुनिया में जोर-शोर से प्रसार भी कर रहे हैं’। पुस्तक में सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी लिखते हैं कि ‘ब्लॉगों की लोकप्रियता और अंतर्जाल से जुड़े प्रवुद्धवर्ग के लिए इसकी सहजता और सरलता ने प्रिंट माध्यम में इसकी चर्चा को अपरिहार्य बना दिया है। प्रायः सभी अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं द्वारा हिन्दी ब्लॉग जगत में प्रकाशित होने वाली रोचक और ज्ञानवर्द्धक जानकारी को अपने पृष्ठों पर प्रमुखता से स्थान दे रहे हैं…. साहित्य के क्षेत्र में भी तकनीक और साधन ने युगांतकारी परिवर्तन किए हैं लेखनी के प्रयोग से पहले स्त्रुति-परंपरा, फिर हस्तलेखन हेतु भोजपत्र, कागज, पांडुलिपि फिर छपाई-मशीन, पुस्तकों और अखबारों का प्रकाशन, कंप्युटर और इंटरनेट के क्रमिक विकास ने साहित्य के सृजन, अध्ययन-अध्यापन व आस्वादन की रीति को लगातार बदला है।’


पुस्तक के विमर्श खंड में अजित राय, शिखा वार्ष्णेय, ललित शर्मा, प्रतीक पांडे, अखिलेख शुक्ल, रश्मि प्रभा, पद्म सिंह, फौजिया रियाज और सुभाष राय जैसे तीस ब्लागरों की भागीदारी है। यहाँ प्रमोद तांबट के महत्वपूर्ण विचार दृष्टव्य है- ‘बाजारवाद के इस निर्मम दौर में जब लोकतंत्र का चौथा खंभा कही जाने वाली पत्रकारिता और मीडियामंडी बड़े-बड़े कार्पोरेट घरानों के हाथों की कठपुतली बनी, दंभपूर्ण बुद्धिजीविता के शिकार पत्रकार-मीडिया पुरुषों से घिरी हुई है, ब्लॉग जगत मध्यमवर्गीय बुद्धिजीवियों के बीच एक किस्म के लोकतांत्रिक स्तंभ के रूप में सामने आने की कोशीश कर रहा है। इसे निस्संदेह पाँचवा खंभे की उपमा दी जा सकती है।’ इसे वैकल्पिक मीडिया का नया अवतार मानते हुए अजित राय ने लिखा है कि- सुप्रसिद्ध विचारक नोन चाम्सकी ने एक बार कहा था कि पूँजी और सत्ता के जनविरोधी दौर में प्रौद्योगिकी आम आदमी के पक्ष में खड़ी दिखाई दे रही है। मिशेल फुकोयामा ने जब ‘इतिहास के अंत’ घोषित किया और दुनिया-भर में जबरस्त बहस छिड़ी, ठीक उसी दौर में अखबार, रेडियो और दूरदर्शन जैसे पारंपरिक जनसंचार माध्यमों के बरक्स वैकल्पिक मीडिया के रूप में इंटरनेट का अवतार हुआ। आज हम विकीलिक्स का प्रभाव देख चुके हैं, जिसने अमरिका की समर्थ सत्ता को हिलाकर रख दिया। मोबाइल की प्रौद्योगिकी ने भारतीय समाज में अभिव्यक्ति की आजादी का जो नया उद्घोष किया था, उसका विस्तार हमें इंटरनेट के साइबर स्पेश में दिखाई देता है। हमारे देखते-ही-देखते संपादकों और जनसंचार-माध्यमों के मालिकों का एकाधिकार खत्म हो गया और हममें से हर कोई अपनी-अपनी पत्रिका निकालने की आजादी का खेल खेलने लगा।’ लंदन में रहने वाली शिखा वार्ष्णेय कहती है कि ‘आज घर में बैठी गृहणी दिनचर्या से ऊबकर कुढ़ती नहीं, बल्कि अपनी भावनओं और विचारों को सुंदर शब्दों में ढालकर ब्लॉग पर लिखती है। फिलहाल एफएम रेनबो से जुड़ी रेडियो जौकी फौजिया रियाज का मानना है कि – दरअसल, ब्लॉगिंग की ओर आपका रूझान बढ़ाने में एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह होता है कि आपको कितने लोग पढ़ रहे हैं। फॉलोअरों की संख्या, कमेंट्स की शैली आपका हौसला बढ़ाते हैं। आपको विश्वास दिलाते हैं कि आपका लिखा महत्वपूर्ण है। दैनिक अमर उजाला के नोएडा कार्यालय मे संपादकीय विभाग में कार्यरत उमाशंकर मिश्र लॉगिंग पर अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखते हैं कि हिन्दी, अंग्रजी समेत कई क्षेत्रीय भाषाओं के अखबारों में ब्लॉगिंग पर आधारित नियमित स्तंभ छप रहे हैं, इलाहाबाद विश्वविधालय और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविधालय, वर्धा जैसे ख्यातिप्राप्त अकादमिक स्थान अब ब्लॉगिंग जैसे विषय पर ब्लॉगरों को बुलाकर परिचर्चाएँ आयोजित कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मीडिया के शोधार्थी भी अब ब्लॉगिंग की उपयोगिता और प्रभाव को ध्यान में रख कर शोध करने में जुटे हुए हैं। ब्लॉग की नित नई खिड़कियाँ खुल रही है। देश-विदेश में बैठे ब्लॉगर साहित्यिक , सांस्कृतिक, सामाजिक, पारंपरिक, कला, मनोविज्ञान, आयुर्वेद, शिक्षा, रोजगार, वैश्विकरण और पर्यावरण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर अपने-अपने ब्लॉग के माध्यम से परस्पर संवाद कर रहे हैं। यहाँ सेंसर की कैंची नहीं है…। सी. वी . न्यूज नेटवर्क में हिन्दी सेक्सन के प्रभारी उमेश चतुर्वेदी का मानना है कि हिन्दी में ज्यादातर ब्लॉगर अपनी वैचारिक भूख और कसक को अभिव्यक्त करने आये तो हैं, लेकिन ज्यादातर की भाषाई संस्कार बेहद कमजोर है। इसने ब्लॉगिंग के स्वाद को बेहद कड़वा बनाया है। लखनऊ प्रकाशित दैनिक जनसंदेश टाइम्स के मुख्य संपादक डा. सुभाष राय का मानना है कि ‘अगर ब्लॉग-लेखन की अर्थपूर्ण स्वाधीनता अपनी पूरी ताकत के साथ सामने आती है तो वह लोकतंत्र के पाँचवे स्तंभ की तरह खड़ी हो सकती है। जिम्मेदारियाँ बड़ी है, इसलिए हमसब को मनोरंजन, सतही लेखन और शब्दिक नंगपन से मुक्त होकर वक्त के सरोकार और मनुष्यता के प्रति प्रतिवद्धता के साथ आगे आकर अग्रिम मोर्चे में खुली जगह ले लेनी है।


इस पुस्तक के विश्लेषण खंड में चार महत्वपूर्ण आलेख यथा रवीन्द्र प्रभात का – हिन्दी ब्लॉगिंग में महिलाओं की स्थिति। बालेंदु शर्मा दाधीच का- ब्लॉगिंगः ऑनलाइन विश्व की आजाद अभिव्यक्ति । आकांक्षा यादव का हिंदी -ब्लॉगिंग का तेजी से बढ़ता सृजनात्मक दायरा एवं चंडीदंत्त शुक्ल का – नेट से पहचान और भी है। माइक्रोसॉफ्ट की ओर से ‘मोंस्ट वेल्युएबल प्रोफेशनल’ करार दिए गये बालेन्दु शर्मा दाधीच ने अपने आलेख में लिखा है कि ‘ ब्लॉगिंग है एक ऐसा माध्यम जिसमें लेखक ही संपादक है और वही प्रकाशक भी। ऐसा माध्यम , जो भौगोलिक सीमाओं से पूरी तरह मुक्त, राजनीतिक -सामाजिक नियंत्रण से लगभग स्वंतंत्र है। जहाँ अभिव्यक्ति न कायदों में बँधने को मजबूर है, न अलकायदा से डरने को। इस माध्यम में न समय की कोई समस्या है, न सर्कुलेशन की कमी, न महीने भर तक पाठकीय प्रतिक्रिया और विश्वव्यापी प्रसार के चलते ब्लॉगिंग अद्वितीय रूप से लोकप्रिय हो गयी है। आकांक्षा यादव अपने आलेख में लिखती हैं कि ब्लॉगिंग का क्रेज पूरे विश्व में छाया हुआ है। अमेरिका में सवा तीन कारोड़ से ज्यादा लोग नियमित ब्लॉगिंग से जुड़े हुए हैं, जो वहाँ के मतदाताओं का 20 फीसदी है। इसकी महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2008 में सम्पन्न अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान इस हेतु 1494 नए ब्लॉग आरंभ किए गए। जापान में हर दूसरे व्यक्ति का अपना ब्लॉग है…फ्रांस के राष्ट्रपति सरकोजी और उनकी पत्नी कार्ला ब्रूनी से लेकर ईरान के राष्ट्रपति अहमदीनेजाद तक शामिल हैं।


संस्मरण खंड पुस्तक का एक महत्वपूर्ण अध्याय है यहाँ ज्ञानदत्त पांडेय, अनूप शुक्ल, जाकिर अली ‘रजनीश’ और रचना त्रिपाठी इस खंड में सम्मलित हैं यहाँ ब्लॉगिंग से जुडी महत्वपूर्ण प्रसंगों को रखा गया है। पुस्तक के साक्षात्कार खंड में प्रिंट और ब्लागिंग जगत के कई चर्चित चेहरे शामिल किये गये हैं जैसे दिविक रमेश, प्रेम जनमेजय, समीरलाल समीर, रवि रतलामी, जी के अवधिया, अलबेला खत्री, अविनाश वाचस्पति, अमरजीत कौर, गौहर राजा, कुष्णबिहारी मिश्र, अंबरीश अंबर, शकील सिद्दीकी और सुषमा सिंह के साक्षात्कार इस ग्रंथ पठनीय के साथ-साथ संग्रहणीय भी बना दिया है। पुस्तक में हिन्दी ब्लॉगिंग को पहचान देने वाले यशवंत सिंह (भड़ास) और अविनाश (मुहल्ला) सदृश्य कुछ शख्सियातों की अनुपस्थिति खलती अवश्य है बावजूद इसके संपदकीय में इस बात का खुलासा दृष्टव्य है कि मात्र एक महीने की सीमित अवधि में पुस्तक का संपादन और मुद्रण आदि सभी कार्य किये गये हैं।


प्रकाशक डा. गिरिराजशरण अग्रवाल के यह विचार भी दीगर हैं कि‘परिवर्तन सृष्टि का नियम है। पिछले कुछ वर्षों से छपी सामग्री पर संकट की बात बहुत जोर से की गयी है, लेकिन मैं इससे कभी विचलित नहीं हुआ हूँ… मेरे मन में यह सहज जिज्ञासा पनप रही थी कि अभिव्यक्ति के नए और तेजी से सशक्त हो रहे माध्यम ‘हिंदी ब्लॉगिंग’ पर एक पुस्तक का प्रकाशन किया जाए, जो हिंदी ब्लॉगिंग की दशा और दिशा को पूरी समग्रता के साथ आयामित कर सके।


संपादक अविनाश वाचस्पति और रवीन्द्र प्रभात के भगीरथ प्रयास का यह फल है कि हिन्दी में ब्लॉगिंग विषयक यह मानक ग्रंथ सामने आया। संपादक द्वय को साधुवाद है।
समीक्षक : अरविन्द श्रीवास्तव
कला कुटीर, अशेष मार्ग
मधेपुरा- 852113. बिहार
मोबाइल- 09431080862.

1 टिप्पणियाँ:

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