(छः)
चमनलाल अपनी नाटक मण्डली के सदस्यों के साथ तैयारी में मशगूल है । अचानक झींगना को सामने देख चौंक गया वह । पास बिढाया उसे और सदस्यों से मुखातिव होते हुए कहा, कि ‘‘दोस्तो ! आप सभी को एक ऐसे व्यक्ति से मिलवा रहा हूँ जो आज के हमारे नाटक का नायक है । नाम है झींगना, डोमवा धरारी का रहने वाला है, जो अक्लु बैठा का स्थान लेगा .....।”
अचानक दिलावर मियां ने टोका - “गुस्ताखी मुआफ हो हुजूर, नवा - नवा बंदा को इतनी बड़ी जिम्मेदारी, बहुत बड़ा रिश्क ले रहे है आप ....... ।”
“हां, सच कह रहे हो दिलावर मियां ! रिश्क तो ले ही रहा हूं मैं, लेकिन हमें झींगना पर पूरा भरोसा है ।”
“कहीं भण्टाधार न हो जाए नाटक का ......।”
“शुभ - शुभ बोलो दिलावर मियां ! एक ही नाटक की तो बात है । अच्छा किया तो रख्रेगे, नही ंतो राम - राम भैया राम - राम ।”
“हुजूर ! इस खाकसार की मानें तो इसे कोई दूसरा काम दे दें ।”
“दिलावर मियां ! मुझे उम्मीद है झींगना निभा लेगा यह जिम्मेदारी ।”
“ठीक है हुजूर ! जैसी आपकी मर्जी ।”
सभी खामोश होकर घूरने लगे झींगना को ऊपर से नीचे तक । अचानक चमन लाल ने चुप्पी तोड़ी और कहा कि “आज के नाटक का शीर्षक होगा ‘महाकवि मुंहफट‘ जिसमें महाकवि की भूमिका झींगना निभाएगा ।”
फिर चमनलाल झींगना की ओर मुखातिव हुआ और बोला - “झींगना साहब ! यह इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लिजै -- एक आग का दरिया है और डूब के जाना है । अदाकारी आसान नही होती, लेकिन जो सच्चे मन से अमल किया वह कामयाब हुआ । समझ गये मेरे कहने का मतलब ?”
“जी गुरू जी !” झींगना ने गम्भीर होकर कहा ।
झींगना का जबाब सुन चमन लाल मुस्कुराया और कहानी का मुख्यांश समझाते हुए सदस्यों को निभाए जाने वाले किरदार के विषय में बताना शुरू किया -
“आज के नाटक में झींगना महाकवि मुंुहफट की भूमिका में होगा । मुंहफट साहब का इस असार - संसार में अपनी प्राणप्रिया जीवन संगनी चन्द्रमुखी के दूजा और कोई नहीं है । साथ में उनकी तीन सालियां भी है सूर्यमुखी, रूपमती और फुलमती जो अपनी अदाओं से झींगना साहब की शायरी को, मेरा मतलब मुंहफट साहब की शायरी को ताजगी प्रदान करेगी । सब कुछ बिस्तार से लिखा हैं पटकथा में । संवाद पर विशेष ध्यान रखा जाए । कहीं से कोई कसर बाकी नहीं रहना चाहिए । इज्जत का सवाल है ।
और हां, फिलहाल मुंहफट साहब के एकाकी जीवन के बारे में बता देना मैं ज्यादा मुनासिब समझता हूं । हां, तो हमारे मुहफट साहब की उम्र होगी तकरीबन पच्चास वर्ष। आशिक मिजाज मुंहफट साहब का तकिया कलाम होगा - ”जब दिल हो जवान, तो ससुरे उम्र का बीच में क्या काम ?” इस तकिये - कलाम को कायदे से प्रस्तुत करना होगा । यह भूमिका झींगना के लिए अग्नि परिक्षा से कम नहीं । खुब मेहनत करनी होगी । कहा गया है ‘मेहनते मर्द मददे खुदा‘ । मेहनत करनेवालों की खुदा भी मदद करता है । तैयार हैं न इस किरदार को निभाने के लिए झींगना साहब ?”
“जी गुरू जी !”
“शाबाश मेरे शेर !”
इतना कहकर चमनलाल अन्य सदस्यों की ओर मुखातिब हुआ, कहा - “दिलावर मियां बनेंगे ‘दिलजला‘। जनाब दिलजला एक ऐसा शायर है, जो अपने - आपको फिराक साहब का शागिर्द बताता है और अपनी चिकनी - चुपड़ी बातों में सबका मन मोह लेता है ।
मुंहफट साहब की साहित्यिक संस्था में एक दर्जन और कवि - शायर होंगे, जिनका किरदार निभाएंगे क्रमशः राम खेलावन, धनेसर, परवेज, जितेन्दर, बरूराज, गोबरधन, मोहना, रमुआ, बालेसर, कटेसर, तिरजुगिया और पहलवान । चन्द्रमुखी की भूमिका में होगी धनपतिया । कवियित्री सरस्वती देवी बनेंगी लाजवंती । डांस आइटम के लिए हमेशा तैयार रहेंगे छक्कन, छक्कु, बिजुली और रम्भा ।”
बीच में अचानक टोकते हुए बोल पड़े दिलावर मियां - “हुजूर ! गुल्टेनवा बाहर बैठेगा क्या ?”
चमनलाल थोड़ा गम्भीर हुए और दिलावर मियां की ओर मुखातिब होते हुए कहा - “अरे नहीं मियां ! आज गुल्टेनवा को मैं बड़ी जिम्मेदारी देने जा रहा हॅू । वह नाटक का संचालन करेगा ।”
काफी देर से कुछ पूछने के लिए बेताव था गुल्टेनवा, लेकिन बीच में बोलने से कतरा रहा था बार - बार । एका एक चमनलाल ने पढ़ा उसके चेहरे का भाब और इशारा करते हुए कहा -
“मैं महसूस कर रहा हूॅ कि तुम कुछ कहना चाह रहे हो ?”
“हां, उस्ताद !” गुल्टेनवा ने सकुचाते हुए कहा ।
“खुलकर बताओं न, उस्ताद से पर्दा कैसा ?”
“उस्ताद ! मेरी परेशानी का सबव बस इतना है कि क्या इस किरदार को निभा पाएगा झींगना ?”
“क्यों नहीं ?”
“उस्ताद ! बड़ा चुनौतीभरा काम हैं यह । झींगना अभी नया है, कैसे निभाएगा इतनी बड़ी जिम्मेदारी ?”
सुुनकर मुस्कुराया चमनलाल फिर बोला -
“कल से मैं भी परेशान था गुल्टेनवा, जब इस पात्र के लिए मैंने झींगना का चुनाव किया । काफी सोच - विचार के बाद मैंने फैसला किया कि झींगना को यह चुनौती दे दी जाए । इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि झींगना की आवाज कुदरत का अनमोल नजारा है । अच्छा बोलता है, अच्छा गाता है । चलते फिरते शायरी करने का इल्म है उसे । वह अलाप ले सकता है और माहौल की नजाकत देखकर बदल सकता है अपना संवाद भी । कर सकता है शेरो - शायरी । जब वह आल्हा, सोरठी सारंगा के साथ - साथ कजरी और विरहा का गायन करता है तो लगता है गुल्टेनवा, कि सरस्वती उसकी जिह्वा पर निवास कर रही है । मुझे तो कोयले में हीरा नजर आ रहा है झींगना । इसलिए मेरी मानों झींगना को निभाने दो यह भूमिका । एक ही नाटक की तो बात है, नहीं चला तो हटा देंगे अगली बार -- ।”
फिर उसने झींगना से पूछा, कि “तुम भी तो कुछ बोलो, कर लोगे न यह सब ?”
झींगना बेहद गंभीर हो गया यह सुनकर, सिर्फ इतना ही कहा - “आप सभी हमें आशीर्वाद दीजिए, हम कर लेंगे यह सब ।”
उसी समय गोबरधन ने व्यंग्यपूर्वक कहा -
“चुप रहिए आप लोग, खामखा चिल - पों न मचाइए । उस्ताद की खोज है कुछ तो खासियत होगी ।”
“हां, हो सकता है यह मौनी बाबा मंच पर जाने के बाद दिलीप कुमार बन जाए। रोमांचित कर दे सबको अपनी अदाओं से -- ।” तिरजुगिया ने फिकरे कसते हुए कहा ।
“हां, भइया ! कुछ भी ही हो सकता है ।” राम खेलावन बोले ।
“अरे कुछ भी ।”
सभी ने तेज ठहाका लगाया । टोका - टोकी के बीच दिलावर मियां ने कहा -
“भैया ! हम सबकी दुआएं झींगना के साथ है । अल्लाह करे ऐसा ही हो ।”
“हां भैया ! हमारी भी दुआएं है -- ।”
“हमारी भी -- ।”
“हमारी भी -- ।”
सभी एक स्वर में बोलने लगे । सुन - सुनकर ताने झल्ला गयी एकवारगी बिजुली रानी, बोली -
“-- झींगना यह नही कर पाएगा -- झींगना वह नही कर पाएगा -- क्या हो रहा है यह सब ? अपने गिरेवां में झांककर देखिए आप लोग --- कभी आप भी नये रहे होंगे । मत करिए हतोत्साहित उसे । उसकी हिम्मत की दाद दीजिए -- ।”
बिजली रानी के हां में हां मिलाती हुई बोली लाजबंती -
“-- देखो, कितनी बड़ी चुनौती स्वीकार की है । मैं तो कहती हूं कि झींगना एक दिन अपनी अदाकारी का लोहा मनवा कर रहेगा ।”
“शुभान अल्लाह ! जब हमरी लाजबंती बोल दी, झींगना सही है त सही है, क्या जुम्मन चाचा ?” परवेज ने कहा ।
“सही फरमाया बचवा ! एक शायर ने अर्ज किया है -- ।”
“क्या अर्ज किया है चाचा ?”
“सुनों, अर्ज किया है - हिम्मत बुलंद अज्म का पैकर तो देखिए, कतरा चला है बनने समंदर तो देखिए ।”
“क्या बात है जुम्मन चाचा, सही फरमाया ।”
तभी चमन लाल ने वहां से उठते हुए कहा - “चुप हो जाइए आप लेाग ! बक - बक करना बंद करिए । समय कम है, अपने - अपने संवाद को अच्छी तरह याद कर लीजिए बर्ना जगहंसायी हो जाएगी । झींगना नया है उसे सहयोग करिए आप लोग । अपने रंग में रंगने की कोशिश करिए उसे, माहौल की नजाकत से रूबरू कराइए, मैं साइड पर जा रहा हंू । देख लूं कहां तक तैयारी हुई है मंच की -- ।”
“हां, हां चलो चलते हैं ।” जुम्मन मियां ने कहा ।
“नहीं जुम्मन मियां, इन लोगों को संवाद याद करवा के आप पीछे से आइए । मंचन में कोई कसर बाकी नहीं रहना चाहिए ।”
“ठीक है आप चलो, स्थिति का जायजा लो मैं एक-आध घंटे में आतां हूं” अपनी सफेद दाढ़ी सहलाते हुए जुम्मन मियां ने कहा और हुक्का गुरगुराने लगा।
......क्रमश: ......७