पुस्तकः हिंदी ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की नई क्रांति/ संपादकः अविनाश वाचस्पति और रवीन्द्र प्रभात /प्रकाशकः हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौ...
राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को परिभाषित करता एक उपन्यास ( ‘राष्ट्र समूह वाचक नहीं, बल्कि व्यक्ति वाचक’)
Written by परिकल्पना संपादकीय टीम | October 15, 2011 | 2 ‘बंद कमरा’ उपन्यास में राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को भी परिभाषित कि...
नया पथ, नया जीवन संदेश
Written by परिकल्पना संपादकीय टीम | July 13, 2011 | 6 आजकल चर्चा में है एक उपन्यास, नाम है ताकि बचा रहे लोकतंत्र रवीन्द्र प्...
एक सार्थक समीक्षा वाणी शर्मा के द्वारा
पुस्तकें यूँ हीं नहीं लिखी जातीं , न यूँ हीं पढ़ी जाती हैं …. पृष्ठ दर पृष्ठ उन्हें समझना होता है . एक सार्थक समीक्षा वाणी शर्मा के द्वारा...
ताकि बची रहे मानवता
Written by परिकल्पना संपादकीय टीम | June 8, 2011 | 0 पुस्तक समीक्षा ज़ाकिर अली ‘ रजनीश ’ आदिकाल से ही भारती...
उपन्यास अंश-११ ( ताकि बचा रहे लोकतंत्र )
(ग्यारह) काफी सुबह आंखे खुल गयी झींगना की, किन्तु अनमने मन से बिस्तर पर लेटे - लेटे उजाला होने का इन्तजार करने लगा । अचानक उसके कानों में...
उपन्यास अंश-१० (ताकि बचा रहे लोकतंत्र )
(दस) पुराना लखनऊ का नक्खास मोहल्ला । बेहद शांत और तहजीब से लबरेज । गंगा - जमुनी संस्कृति का जीबंत गवाह । गारे और चूने की पुरानी इमारतें,...
उपन्यास अंश-९ (ताकि बचा रहे लोकतंत्र)
(नौ) वैशाली एक्सप्रेस के आरक्षण डिब्बे में शौचालय के आस - पास मुंह लटकाये बैठा है झींगना । उसके मन में कुछ खदबदा रहा है । वह अथाह सोच ...