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अभिव्यक्ति की नई क्रांति यानी हिन्दी ब्लॉगिंग का वैश्विक हस्तक्षेपअभिव्यक्ति की नई क्रांति यानी हिन्दी ब्लॉगिंग का वैश्विक हस्तक्षेप

पुस्तकः हिंदी ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की नई क्रांति/ संपादकः अविनाश वाचस्पति और रवीन्द्र प्रभात /प्रकाशकः हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर (उ.प्र)/ मूल्य- 495/(चार सौ पिचानवे ) रुपए /प्रथम संस्करणः 2011. वर्तमान समय में मीडिया को पांच भागों में विभक्त किया जा सकता है। सर्वप्रथम प्रिंट, दूसरा रेडियो, तीसरा…

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15Nov2011

राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को परिभाषित करता एक उपन्यास ( ‘राष्ट्र समूह वाचक नहीं, बल्कि व्यक्ति वाचक’)राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को परिभाषित करता एक उपन्यास ( ‘राष्ट्र समूह वाचक नहीं, बल्कि व्यक्ति वाचक’)

Written by परिकल्पना संपादकीय टीम | October 15, 2011 | 2 ‘बंद कमरा’ उपन्यास में राष्ट्र की ‘संज्ञा’ को भी परिभाषित किया गया है,व्यक्ति और राष्ट्र के बीच उत्पन्न हुए द्वन्द-प्रसंगों का भी उल्लेख किया गया है। इस उपन्यास में राष्ट्र को परिभाषित करते हुए लेखिका पाठकों के सम्मुख कुछ सवालों के जरिये हकीक…

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15Oct2011

नया पथ, नया जीवन संदेशनया पथ, नया जीवन संदेश

Written by परिकल्पना संपादकीय टीम | July 13, 2011 | 6 आजकल चर्चा में है एक उपन्यास, नाम है ताकि बचा रहे लोकतंत्र रवीन्द्र प्रभात के इस पहले उपन्यास से गुजरते हुए ….. अबतक जिन व्यक्तियों ने अपनी टिपण्णी की है, उसमें जाकिर अली रजनीश और वाणी शर्मा प्रमुख हैं । जाकिर अली रजनीश ने अपनी समीक्षा में कहा ह…

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19Jul2011

एक सार्थक समीक्षा वाणी शर्मा के द्वाराएक सार्थक समीक्षा वाणी शर्मा के द्वारा

पुस्तकें यूँ हीं नहीं लिखी जातीं , न यूँ हीं पढ़ी जाती हैं …. पृष्ठ दर पृष्ठ उन्हें समझना होता है . एक सार्थक समीक्षा वाणी शर्मा के द्वारा – ” ताकि बचा रहे लोकतंत्र ” ……एक दृष्टि पिछले दिनों रविन्द्र प्रभात जी का उपन्यास ” ताकि बचा रहे लोकतंत्र ” पढ़ा . हिंद -युग्म से प्रकाशित इस उपन्यास के सम्बन्ध म…

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09Jul2011

ताकि बची रहे मानवताताकि बची रहे मानवता

Written by परिकल्पना संपादकीय टीम | June 8, 2011 | 0   पुस्‍तक समीक्षा   ज़ाकिर अली ‘रजनीश’  आदिकाल से ही भारतीय समाज की बुनावट कुछ इस तरह से रही है कि यहाँ पर शुरू से ही दो विभाजन पाए जाते रहे हैं। एक शोषक वर्ग और दूसरा शोषित वर्ग। जिसके पास शक्ति रही, सामर्थ्‍य रही वह शोषक बन गया और जो कमजोर पड़ा…

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08Jun2011

उपन्यास अंश-११ ( ताकि बचा रहे लोकतंत्र )उपन्यास अंश-११ ( ताकि बचा रहे लोकतंत्र )

(ग्यारह) काफी सुबह आंखे खुल गयी झींगना की, किन्तु अनमने मन से बिस्तर पर लेटे - लेटे उजाला होने का इन्तजार करने लगा । अचानक उसके कानों में सुबह की अजान के साथ तान पूरे की कर्ण प्रिय धुन जब धुले - मिले रूप में गूंजी तो चौंक गया वह एक बारगी । संगीत के मधुर एहसास का आकर्षण उसे खिंचता चला गया वहां, जहां …

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29Mar2011

उपन्यास अंश-१० (ताकि बचा रहे लोकतंत्र )उपन्यास अंश-१० (ताकि बचा रहे लोकतंत्र )

(दस) पुराना लखनऊ का नक्खास मोहल्ला । बेहद शांत और तहजीब से लबरेज । गंगा - जमुनी संस्कृति का जीबंत गवाह । गारे और चूने की पुरानी इमारतें, लखनबी शानो - शौकत की याद ताजा कराती गौरव शाली अतीत की जीती - जागती तसबीर । संगमरमरी दीवार, नक्काशीदार दरवाजे, संकरी और धुमावदार गलियां नजाकत और नफासत का एहसास करा…

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02Feb2011

उपन्यास अंश-९ (ताकि बचा रहे लोकतंत्र)उपन्यास अंश-९ (ताकि बचा रहे लोकतंत्र)

(नौ) वैशाली एक्सप्रेस के आरक्षण डिब्बे में शौचालय के आस - पास मुंह लटकाये बैठा है झींगना । उसके मन में कुछ खदबदा रहा है । वह अथाह सोच की गहराईयों में डूबा है कि कैसे यकबयक बदल ली है करबट उसकी जिन्दगी ने । जब होश संभाला था वह समाज की पिछली पंक्ति में अपने आप को पाया था । हिम्मत की और संजोये सपने का…

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30Jan2011
 
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